नवरात्री का वैज्ञानिक - आध्यात्मिक रहस्य :-
नवरात्री ,नौ देवियो के आराधना और साधना करने का समय है। जिसने अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त कर लिआ है उसे दुर्गा कहते है। साल में मुख्य दो नवरात्री आते है ,जो की मार्च और सितम्बर में पड़ते है। इस समय रोगाणु आक्रामक की सर्वाधिक आशंका होती है। ऋतू परिवर्तन होने के कारण शारीरिक बीमारियों की आशंका ज्यादा होती है ,इसलिए व्रत के माध्यम से शरीर को शुद्ध करने के लिए व्रत का नियम बताया जाता। छह -छह महीने के अंतर पे हमें अपने शरीर की शुद्धिकरण की आवश्यकता होती है। वैसे शरीर का शुद्धिकरण तो रोज किआ जाना चाहिए और बहुत से लोग रोज करते भी है लेकिन नौ रात्रि यानि अमावस्या की रात से लेकर नवमी तक का वो समय है जब हमारा मन भक्ति और आराधना को स्वीकार करते हुए उसके नियम - पालन को बड़ी सहजता से स्वीकार कर लेता है। व्रत में पके हुए भोजन को खाना या तामसी भोजन वर्जित होता है क्यों की इनसे हमारा शरीर सुस्त होता है और शरीर की शक्ति भी कम होती है जिससे कई तरह की बीमारिया शरीर में जन्म लेती है।
जब हमारा मन ,बुद्धि ,शरीर किसी इष्ट देवी या देवता के आराधना में लग जाता है तो पॉजिटिव ऊर्जा का संचार होने लगता है। जब हम व्रत करते है तो सात्विक भोजन करते है जैसे फल ,दूध ,मेवा आदि लेते है सात्विक आहार लेने से शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।
माँ दुर्गा |
अब बात करते है नवरात्री के नव देवियो की। नव देविया -1 . शैलपुत्री (पर्वत की बेटी ) 2 . ब्रह्मचारिणी ( माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप ) 3 . चन्द्रघण्टा (माँ का गुस्से का रूप ) 4 . कुष्मांडा (माँ का ख़ुशी भरा रूप ) 5. स्कंदमाता (माँ के आशीर्वाद का रूप ) 6. कात्यायनी ( माँ दुर्गा की बेटी जैसी ) 7. कालरात्रि (माँ का भयंकर रूप ) 8. महा गौरी (माँ पार्वती और पवित्रता का स्वरुप ) 9. माँ सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप ) . माँ के इन्ही नौ नामो और रूपों की आराधना नौरात्रि में होती है। हमे अपने जीवन की जीवन यात्रा को सफलता से पूर्ण करने के लिए शक्तियों की आवश्यकता होती है इन्ही शक्तियों को प्राप्त करने के लिए नौ दुर्गा की आराधना की जाती है। माँ को अष्टभुजा धारी भी कहा जाता है यानि माता के आठ भुजाये होती है। ये देविया पवित्रता एवं शक्ति का प्रतिक होती है जहां पवित्रता है वह अपार शक्तिया है और जब हम श्रद्धा भाव से किसी देवी की साधना करते है तो हम भी वैसे होते जाते है। हमारे विचारो का शुद्धिकरण होने लगता है। कर्म हमारे शुद्ध होने लगते है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हम में होने से हम वायुमंडल की सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते है। जब विचार शुद्ध हो जाते है तो सेवा की भावना मन में जागृत होती है।
माँ दुर्गा , शिव -शक्ति के नाम से भी जानी जाती है। शिव - शक्ति अर्थात शिव की आराधना कर के शिव से शक्ति लेकर शिव जैसा बनाना। हम सब की आत्माये भी अपार शक्तिओ से भरी है अजर ,अमर ,अविनाशी है। देवी माँ के आठ भुजाये है इसलिए देवी माँ को अष्टभुजाधारी नाम से भी जाना जाता है। ये आठ भुजाये अष्टशक्तियो का प्रतिक होती है।
- समेटने की शक्ति
- सहन शक्ति
- समाने की शक्ति
- परखने की शक्ति
- निर्णय शक्ति
- सामना करने की शक्ति
- सहयोग शक्ति
- विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति
इस प्रकार हम नौ दुर्गा की आराधना और साधना करके अपने अंदर भी ये अष्टशक्तिया जागृत कर सकते है।
माँ दुर्गा शक्तियों का प्रतिक होती है। अपने अंदर के विकार रूपी (काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,अहंकार ) महिषासुर का वध करना है। नौ रात्रि में मिटटी का दिआ जलाते है जिसका अर्थ है इस मिट्टी रूपी शरीर जो की पांच तत्वों का बना है उसमे आत्मा रूपी लौ प्रकाश को जलाना।
इन नौ दिनों जागरण का नियम है क्यों की इस जीवन यात्रा को सफलता से पूर्ण करने के लिए हमे अज्ञान रूपी अंधकार से जगकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढ़ना चाहिए। आत्मा के सात गुण होते है। 1. ज्ञान 2. पवित्रता 3. शांति 4. प्रेम 5 . सुख 6 . आनंद 7. शक्ति।
अपनी कमी कमजोरियों को छोड़ कर अज्ञान रूपी अंधकार से जागकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढ़ना ही सच्ची नवरात्री मानना है।
इन नौ दिनों जागरण का नियम है क्यों की इस जीवन यात्रा को सफलता से पूर्ण करने के लिए हमे अज्ञान रूपी अंधकार से जगकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढ़ना चाहिए। आत्मा के सात गुण होते है। 1. ज्ञान 2. पवित्रता 3. शांति 4. प्रेम 5 . सुख 6 . आनंद 7. शक्ति।
अपनी कमी कमजोरियों को छोड़ कर अज्ञान रूपी अंधकार से जागकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढ़ना ही सच्ची नवरात्री मानना है।
नव रात्रि की आप सभी लोगो को ढेरो सारी शुभकामना।
1 Comments
Nice
ReplyDelete