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सही सोचने की कला

सही सोचने की कला :-

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हर व्यक्ति, हर छण कुछ न कुछ सोचते रहता है। ज्यादातर लोग अपनी काल्पनिक दुनिया में खोये रहते है , वो अपनी ही बनायीं पिक्चर को देखते रहते है जिसे आम भाषा में ख्याली पुलाव वाली दुनिया भी कहते है। कभी दुःख भरी बातो को याद करते है तो कभी कोई कॉमेडी मूवी देखते है तो कभी डरावनी मूवी खुली आँखों से अपने मन के द्वार पे देखते ही रहते है। बहुत समय से अपने ख्यालो में जीते रहने से उन्हें हर वक्त कुछ न कुछ सोचने की आदत पड़ जाती है वो न जानते हुए यानि जागरूकता की कमी होने के नाते अपनी ऊर्जा को व्यर्थ ही गवाते रहते है। 
आपको शायद मालूम नहीं है की उतनी थकान 10 घण्टे काम करने से भी नहीं आती है जितनी की ज्यादा सोचने से आती है और आपकी संचित ऊर्जा भी व्यर्थ होती है। नेगेटिव , पॉजिटिव , व्यर्थ और आवश्यक ये हमारे विचारो के प्रकार होते है। ये हम पर निर्भर करता है की हम अपने सोचने की आदत कैसी बनाये। जैसा आदत हम डालेंगे वैसा ही हमारे सोचने की आदत होगी। कई व्यक्ति को निराशा में रहने की आदत पड़ जाती है और वो हर वक्त कुछ नेगेटिव या फिर व्यर्थ सोच कर स्वयं को दुःख की अनुभूति कराते है। धीरे धीरे उनकी ऊर्जा भी नष्ट होने लगती है और वो निराशा , तनाव के शिकारी बन जाते है , एक रहस्य ये भी है की ऐसे लोगो के ज्यादा समय बिताना कोई पसंद नहीं करता है।
ऐसे भी व्यक्ति मिलेंगे जो पॉजिटिव ऐटिटूड ( Positive attitude and necessary thought ) , और आवश्यक सोच वाले होते है यानि जो काम उन्हें करना है , जो जरुरी है वही सोचेंगे।
 ऐसे व्यक्ति हर वक्त जोश और ऊर्जा से भरपूर होते है , उनके पास व्यर्थ के लिए समय नहीं होता है। हर व्यक्ति एक दिन में 60,000 से लेकर 70 , 000 तक विचार ( थॉट ) क्रिएट करता है। 
अब बात आती है की सही कैसे सोचे , जैसा की मैंने ऊपर के पैराग्राफ में बताया है की नेगेटिव , पॉजिटिव , व्यर्थ और आवश्यक ये चार प्रकार के सोचने के तरीके होते है , जिनमे ज्यादातर लोग नेगटिव और व्यर्थ ज्यादा सोचते है , ऐसे लोग अपने जीवन से हताश है , निराश है और कई व्यक्ति ऐसे भी है ( ज्यादा लोग ) जिन्हे ये पता भी नहीं है की उनकी सोच उन्हें किस तरह नुकसान पहुँचा रही है और वो अपनी डेस्टिनी ( भाग्य ) को कैसे स्वयं ही बिगाड़ रहे है क्यों की जैसा हम सोचते है धीरे धीरे वैसा ही हम बन जाते है। शेर जैसा सोचने वाले व्यक्ति निडर बन जाते है और बार बार डर , भय सोचने वाले व्यक्ति डरपोक किस्म के बन जाते है। हमारे माइंड का काम है विचारो को उत्पन्न करना यानि माइंड कोई न कोई विचार जरूर सृजन करेगा , अब ये आप पर निर्भर करता है की आप कैसा भोजन अपने मन (माइंड ) को परोसे यानि कैसा संकल्प ( विचार ) अपने माइंड को दे। 
आप जैसा आदत डालेंगे वैसा संस्कार आपका बनेगा इसलिए बड़े बुजुर्ग हमेशा कहते है बच्चो में अच्छे संस्कार डालो , उन्हें अच्छा सिखाओ ताकि उनमे अच्छे सँस्कार आये। ये सबकुछ आसान है , बस जरुरत है अभ्यास की , आपको अपने माइंड को अच्छा सोचने की आदत डालनी होगी , इसका आपको अभ्यास ( प्रैक्टिस ) करना होगा। 
अपने विचारो को देखना शुरू कर दे ऐसा करने से कुछ समय के लिए आपके विचार रुक जायेंगे , शांत हो जायेंगे , फिर धीरे धीरे वही सोचे जो आपको आज करना है , कोई प्रोजेक्ट है या फिर आपका पढाई (स्टडी ) . ऐसा प्रैक्टिस करते रहने से आपको सही सोचने की आदत पड़ जाएगी और सबसे ज्यादा फायदा आपको ये होगा की आप खुद से खुश रहने लंगेगे। जितना आप खुश रहेंगे , उतना ही आपका सेहत अच्छा रहेगा , तनाव कम होगा। पॉजिटिव ऐटिटूड आने से आप एक सफल व्यक्ति बनने लगेंगे। 

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