बच्चो को प्रेणना देने वाली सिख :-
कहानी ( जय और उसकी माँ )
बहुत साल पहले की बात है , एक बहुत सुन्दर सा , पहाड़ो के पास हरियाली से घिरा खूबसूरत गाँव था , वहा पर एक दस वर्ष का लड़का रहता था। उसका नाम जय था। उसकी माँ बहुत ज्ञानी थी , जय को अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनाती थी ताकि उसे अच्छे काम करने की सिख मिले और वह अपने जीवन में बहुत आगे बढे। वह कहानियो के जरिये उसमे सकारात्मक विचारो के बीज डालती थी ताकि जय अपने जीवन को सकारात्मक तरीके से जिए। जय की माँ अक्सर उसे कहानी में बताती थी की नेक काम करने वाले और अच्छे से पढाई करने वाले जीवन में बहुत आगे बढ़ते है , भगवान उन्हें आगे बढ़ने में हमेशा मदद करते है।
एक दिन जय के मन में आया की वो बहुत बड़ा डॉक्टर बने ताकि वह लोगो की हमेशा मदद कर सके और वह भगवान को बार बार कहने लगा की " हे भगवान मुझे अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ना है , हमेशा अच्छे काम करने है , इसलिए मै डॉक्टर बनना चाहता हु " , एक दिन भगवान ने उसकी सुन ली और वे उसके सपने में आये , भगवान ने जय को कहा की आपको जीवन में सफल होने के लिए पढाई मन लगा के करनी होगी , उन्होंने जय को एक डिब्बी देकर कहा जब भी आप अच्छे काम करोगे तो इस डिब्बी में एक सिक्का बढ़ जायेगा और धीरे धीरे यह डिब्बी भर जाएगी , ऐसा कह कर भगवान अंतर्ध्यान हो गए । जय हमेशा अच्छे काम करने लगा और खूब मन लगा कर पढाई करने लगा, उसके डिब्बे के सिक्के बढ़ने लगे।
एक दिन जय खेल रहा था उसके पास एक अँधा बूढ़ा व्यक्ति आया , वो उससे सड़क पार करवाने की मदद मागने लगे , जय खेलने में मगन था इसलिए उसकी मदद नहीं करनी चाहा। तब तक तो जय ने सामने से अपने शिक्षक को आते देखा। जय अपने शिक्षक को प्रभावित करने के लिए उस अंधे बुजुर्ग की मदद करने लगा ताकि उसके शिक्षक उससे बहुत खुश हो जाये और ऐसा ही हुआ ,उसके शिक्षक उससे बहुत खुश हुए। जब जय अपने घर गया ,तो उसने अपनी डिब्बी खोलकर देखि तो उसमे उसको सिक्के बढे नहीं मिले , जय को बहुत दुःख हुआ की भगवान ने अपना वादा पूरा नहीं किया।
रात में भगवान फिर से उसके सपने में आये , जय ने भगवान से कहा की, मैंने अंधे बुजुर्ग की मदद की तो भी मेरे डिब्बी के सिक्के नहीं बढे , भगवान ने जय से कहा , बेटा आपने अंधे बुजुर्ग की सहायता अपने शिक्षक को दिखाने और उनसे प्रंशसा पाने के लिए किया था जो की आपको उसी वक्त मिल गया , "मै सिर्फ निःस्वार्थ भाव से किये गए काम पे ही खुश होता हु " जय को अपनी गलती समझ आ गई और आगे से उसने निःस्वार्थ भाव से अच्छे काम करने शुरू किये , पढाई मन लगा कर अच्छे से किया , धीरे धीरे जय की डिब्बी भी सिक्को से भर गई। जय बड़ा होकर डॉक्टर बना , उसने अपने गाँव वालो की और आस पास बसे लोगो की निःस्वार्थ भाव से सेवा की। जय का देश विदेश में बहुत नाम हुआ , जय को सम्मानित किया गया।
शिक्षा :- हमे दिखावे की बजाय वास्तविक जरुरत से अच्छे काम करने चाहिए।
लेखक :- अवनीश , रेलवे इंजीनियर।
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