स्वयं की खोज :-
आकाश की तरफ देखिये। हम अकेले नही है सारा ब्रह्मण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने आप देखते है उनको साकार करने के लिए मेहनत करते है उन्हें प्रतिफल देने के लिए सारा ब्रहाण्ड साजिश कर रहा है।
आकाश की तरफ देखिये। हम अकेले नही है सारा ब्रह्मण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने आप देखते है उनको साकार करने के लिए मेहनत करते है उन्हें प्रतिफल देने के लिए सारा ब्रहाण्ड साजिश कर रहा है।
सभी सोचते है की सभी इच्छाईये पूरी होना ही सुखी होना है पर ये बस सबका भ्रम है क्यों कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है ये तो एक के बाद एक जन्म लेती ही रहती है।
आज यदि हम हम अपने आस पास देंखे , ध्यान दे तो हर कोई कुछ पाने की चाह में यहाँ वहा भाग रहा है दौड़ रहा है कि कुछ ऐसा मिल जाये जिससे वो तृप्त हो जाये। इच्छाये भी मनुष्यो में बढ़ती जा रही है जो कभी खत्म ही नहीं हो रही है। एक इच्छा पूरी होती नहीं कि दूसरी जन्म ले रही है इसप्रकार इच्छाओं ने तो जैसे एक लम्बी कतार बना ली है और सभी व्यस्त हो गए है उन्हें पूरा करने में। आज ये चाहिए तो कल कुछ और चाहिए और यदि नहीं मिल पाए तो चिड़चिड़ापन। कभी अपने लुक पे ध्यान दिया जा रहा है तो कभी कपड़ो पे। मटेरिअलिस्टिक वर्ल्ड में मटेरियल इकठ्ठा करते जा रहे है जिसका अस्तित्व बस कुछ छड़ का है।
अपने जरुरत के अनुसार सामान लेना कोई बुरी आदत नहीं है क्यों की इस जीवन में सरलता लाने के लिए , कोई काम आसानी से हो जाये इसके लिए किसी वस्तु विशेष की जरुरत होती है सो हमे लेनी ही है लेकिन उस वास्तु विशेष में अपनी खुशिया देखना तो कही से सही नहीं है। आज लोग इतने मटेरियलिस्टिक हो चुके है की अपने खुशियों को सामान से सम्बंधित कर दिए है यदि वो चीज है उनके पास तो वो खुश है यदि नहीं है तो दुःखी है अब तो लोगो की सोच इस नौबत पर आ गई है कि वो ऐसा भी सोचने लगे है की क्या फायदा इस जीवन का , ऐसा जीवन कीस काम का जहाँ हम अपने इच्छाओ को भी पूरा न कर पाए ।
ऐसे भाग दौड़ करते एक समय ऐसा आता है जब हम सभी को एक ठहराव की जरुरत होती है और हमे कोई सामान की नहीं शांति की जरुरत होती है तब कुछ समय के लिए हम शांत होना चाहते है। हमने खुद से ही इतनी दूरिया बना ली है कि हमारा अंतरमन चाहता क्या है ये हम कभी जान ही नहीं पाते। हम व्यस्त हो गए है बाहरी चकाचौंध में। सारा ब्रह्माण्ड तो आपके अंदर हि छुपा है सारी शक्तियाँ अंदर है। इन अन्तः मन के शक्तियों को पहचानने के लिए एक ठहराव की जरुरत है कुछ छड़ के शांति की जरुरत है। अपने यात्रा को अपने अंदर शुरू करे। ये साँसे जो इस जीवन को चला रही है या जब तक साँसे है तब तक जीवन है कभी उनपे भी गौर करे। कभी इन साँसो को शुक्रिया भी करे जिससे हमारा जीवन संभव है। खुद को महसूस करे।स्वयं को जानना और स्वयं को पहचाना जीवन सबसे बड़ी कला है। सदैव जिज्ञासु बने कुछ जानने और सिखने के लिए। आप बस हाड़ मांस के बने शरीर नही है आप में अपार क्षमताए है।आपके अंदर अपार शक्तियों का भण्डार है बस जरुरत है आपको उस तक पहुँचने की ,उसको पहचानने की। जल , वायु , अग्नि,आकाश,पृथ्वी इन सब से मिलकर ये शरीर बना। इसलिए कहते है सारा ब्रह्मण्ड आपके भीतर है। यानि सारी शक्तियाँ आपके अंदर है और इन तक पहुँचने का आसान तरीका है ध्यान , साधना। जो आपके विचारो के गति को धीमा करके आपके मन को शांत करके आपको अपने अन्तः मन तक पहुँचा सकता है। बस जरुरत है कुछ छड़ के ठहराव की , खुद के अंदर झाकने की। स्वयं को समझने की। आपको इसके लिए साधु बनने की जरुरत नहीं है और न ही घर बार छोड़ने की। आप का जो भी लाइफ स्टाइल है आप उसको एन्जॉय करे। बस जरुरत है तो जिज्ञासू बनने की ताकि आपका लाइफ और भी सुलझा और बेहतरीन हो सके। आमतौर पे देखा जाता है ऐसी बड़ी बातो से लोग डर जाते है और अपने आप को समझने की कोशिश ही नहीं करते। कहने लगते है हम कोई सन्यासी थोड़ी न है ,अभी बहुत जिम्मेदारी है हम पे। सही बात है एक पिता या एक माता या फिर घर का कोई भी जिम्मेदार आदमी जिस पे सारा घर टिका है वो आश्रम - आश्रम नहीं भटक सकता। साधु समाज भी सही समझ देने के बजाय उनके लाइफ का बहुत समय लेने लगते है जिससे बहुत से लोगो का करियर बिगड़ जाता है इसलिए थोड़ी अपनी चतुराई भी अपनाइये। स्वयं को जानने के लिए ,इस जीवन को समझने के लिए जिज्ञासू बनिए मुर्ख नहीं जितना आप जानते है उससे ज्यादा इसलिए जानना है ताकि आप इस भाग दौड़ भरी लाइफ में खुद को रिलैक्स महसूस कर सके ,परेशानी आने पे परेशान न हो उसका समाधान कर सके और खुश रह सके ,अपने लिए जिए। |
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