मीरा के कृष्णा |
कुछ लोग अपने जीवन के सुख साधनो में व्यस्त है ,सभी प्रकार के अच्छे से अच्छे सुख सुविधाये होने के नाते उनका जीवन उसी में मग्न है और एक तरफ ऐसे भी लोग है जो अपने आपसी उलझनों में व्यस्त है, कुछ उलझने रिश्तो में है तो कुछ उलझने मन के कोने में बीते बातो के है। इसी तरह सब कुछ चलता जा रहा है जीवन भी आगे बढ़ता जा रहा है चाहे सोच के आगे बढ़ रहा है, चाहे कुछ बिना सोचे। ये जीवन है जो चलता ही रहेगा।
ईश्वर को लेकर सबके राय अलग अलग है सबके मन में कुछ इच्छाईये,मन की कामनाये है और उसी के सुनवाई के लिए हम सभी मंदिर,मस्जिद, गुरद्वारे,चर्च के चक्कर लगा लेते है की ईश्वर के पास बड़े पॉवर होते है जीवन के मुश्किल दौर में शायद ये कुछ चमत्कार कर देंगे या फिर प्रेजेंट में ही कुछ महत्वपूर्ण कार्य है, हो नहीं रहा है तो भगवान की मदद मिल जाये। कई बार जब हमारी पुकार भगवान सुन लेते है तब तो हम जैसे फुले नहीं समाते पर यदि हमारी हियरिंग नहीं हुई तो बस अब तो भगवान गए काम से। हम तो मुँह फुला के बैठ गए।
नाराजगी , गुस्सा , प्रेम तो जीवन का हिस्सा है ये सब तो चलता रहेगा।अब कइयों के मन में ये बात रहता है की हम अभी से ईश्वर के साथ क्यों जुड़े,ये सब फिजूल की बाते है, इतना समय कहा है, फिर ये उम्र तो हमारे मौज मस्ती का है, ऐसी बहुत सारी बाते दिमाग में आती है फिर सारी बाते छोड़ हम अपने रोज के काम में व्यस्त हो जाते है।
दिमाग है भी बड़ा कमाल का चीज, बिना फायदा पाए कोई रिश्ता नहीं जोड़ता और जहा फायदा देखता है वहा दौड़ के चला जाता है फिर आज के समय में तो अधिकांशतः रिश्ते स्वार्थ पर निर्भर है यदि स्वार्थ पूरा न हो सके तो रिश्ते किसी काम के नहीं।
मुझे अपने मन के तार को ईश्वर से जोड़ना बहुत पसंद है क्यों की ईश्वर को जब भी मै याद करती हु, मेरे मन को वो शुद्ध करते है, जब भी मै उन्हें याद करती हु मेरे भावनावो में पारदर्शिता लाते है, ये सही है की भगवान आपको महँगी वस्तुए, महंगी गाड़िया, राजशाही जीवन नहीं देंगे लेकिन हमारे उत्तम कर्म एक रास्ता जरूर तैयार कर देंगे।
भगवान ( भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, न से नीर ) जो पांचो तत्वों से परे है जिन्हे हमसे बहुत उपहार या फिर महंगे सामान कुछ नहीं चाहिए, वो जो हमारे संकल्पो की भासना से हमारे विचारो के तरंगो से हमे जान जाता है उसे सिर्फ हमारे मन की निर्मलता चाहिए , हमारी शुद्धता चाहिए और हमारे मन की पवित्रता चाहिए।
इसलिए कृष्ण का सुदामा के प्रति अपार स्नेह था, राम का शबरी के प्रति, राम का हनुमान के प्रति भी और ऐसे अन्य लोग जिनका मन पारदर्शी यानि पवित्र, निर्मल था।
कहा जाता है ईश्वर पवित्रता का सागर है, ईश्वर प्रेम का सागर है, ईश्वर क्षमा का सागर है, ईश्वर ज्ञान का सागर है, ईश्वर गुणों का सागर है, ईश्वर आनंद का सागर है तो सागर के समीप खड़े होने पर हम में भी वैसे गुण आएंगे।हम भी ईश्वर जैसे निर्भय , निडर, सच्चे बनेगे। जीवन में एक निश्चिंतता आएगी। विश्वकल्याण की भावना जागृत होगी, मन शुद्ध होगा जिससे चारो तरफ का वायुमंडल बदलेगा, शुद्ध बनेगा।
आज विचारो में इतनी गिरावट आ चुकी है की लोग किसी के भी बहकावे में आ जा रहे है, खुद का निर्णय शक्ति जैसे काम ही नहीं कर रहा है , जैसा सही, गलत सिख किसी व्यक्ति ने दे दी वैसा करनी करना शुरू कर दे रहे है। कुछ देर के लिए ठहरिये, शांत चित्त होकर बैठिये फिर निर्णय लीजिये की यदि ईश्वर जो की ऐसे गुरु है जो कोई फीस भी नहीं लेते, बिना फीस लिए वो आपका इलाज करते है, आपके विकार रूपी भुत ( काम, क्रोध, मोह, लोभ, ईर्ष्या, अहंकार ) इसका इलाज करते है , आपको अपने जैसा बनाते है तो उनके समीप जाने में क्यू देर किया जाये जो हमे जीवन का उत्तम राह दिखाते है।
दिमाग है भी बड़ा कमाल का चीज, बिना फायदा पाए कोई रिश्ता नहीं जोड़ता और जहा फायदा देखता है वहा दौड़ के चला जाता है फिर आज के समय में तो अधिकांशतः रिश्ते स्वार्थ पर निर्भर है यदि स्वार्थ पूरा न हो सके तो रिश्ते किसी काम के नहीं।
मुझे अपने मन के तार को ईश्वर से जोड़ना बहुत पसंद है क्यों की ईश्वर को जब भी मै याद करती हु, मेरे मन को वो शुद्ध करते है, जब भी मै उन्हें याद करती हु मेरे भावनावो में पारदर्शिता लाते है, ये सही है की भगवान आपको महँगी वस्तुए, महंगी गाड़िया, राजशाही जीवन नहीं देंगे लेकिन हमारे उत्तम कर्म एक रास्ता जरूर तैयार कर देंगे।
भगवान ( भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु, न से नीर ) जो पांचो तत्वों से परे है जिन्हे हमसे बहुत उपहार या फिर महंगे सामान कुछ नहीं चाहिए, वो जो हमारे संकल्पो की भासना से हमारे विचारो के तरंगो से हमे जान जाता है उसे सिर्फ हमारे मन की निर्मलता चाहिए , हमारी शुद्धता चाहिए और हमारे मन की पवित्रता चाहिए।
इसलिए कृष्ण का सुदामा के प्रति अपार स्नेह था, राम का शबरी के प्रति, राम का हनुमान के प्रति भी और ऐसे अन्य लोग जिनका मन पारदर्शी यानि पवित्र, निर्मल था।
कहा जाता है ईश्वर पवित्रता का सागर है, ईश्वर प्रेम का सागर है, ईश्वर क्षमा का सागर है, ईश्वर ज्ञान का सागर है, ईश्वर गुणों का सागर है, ईश्वर आनंद का सागर है तो सागर के समीप खड़े होने पर हम में भी वैसे गुण आएंगे।हम भी ईश्वर जैसे निर्भय , निडर, सच्चे बनेगे। जीवन में एक निश्चिंतता आएगी। विश्वकल्याण की भावना जागृत होगी, मन शुद्ध होगा जिससे चारो तरफ का वायुमंडल बदलेगा, शुद्ध बनेगा।
आज विचारो में इतनी गिरावट आ चुकी है की लोग किसी के भी बहकावे में आ जा रहे है, खुद का निर्णय शक्ति जैसे काम ही नहीं कर रहा है , जैसा सही, गलत सिख किसी व्यक्ति ने दे दी वैसा करनी करना शुरू कर दे रहे है। कुछ देर के लिए ठहरिये, शांत चित्त होकर बैठिये फिर निर्णय लीजिये की यदि ईश्वर जो की ऐसे गुरु है जो कोई फीस भी नहीं लेते, बिना फीस लिए वो आपका इलाज करते है, आपके विकार रूपी भुत ( काम, क्रोध, मोह, लोभ, ईर्ष्या, अहंकार ) इसका इलाज करते है , आपको अपने जैसा बनाते है तो उनके समीप जाने में क्यू देर किया जाये जो हमे जीवन का उत्तम राह दिखाते है।
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