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थोड़ी साधुपना स्वयं में जरूर लाये

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Desire of doing something
साधु कौन है ,क्या आप बता सकते है ,साधु कौन है आप सभी सोच रहे होंगे वो व्यक्ति जो गेरुआ वस्त्र पहनता है ,बड़ी बड़ी दाढ़ी होती है,जटाये हो ,भजन कीर्तन करे और तीर्थधाम की यात्रा में लगा रहे उसे साधु कहेंगे। बस इतना ही होना साधु कहलाना काफी नहीं है साधु वो है जिसमे सत्य को जानने की इच्छा है ,साधु वो है जिसमे सत्य को पाने की इच्छा है ,साधु वो है जो मान ,अपमान में एक समान है,साधु वो है जो हर वक्त आन्दित है , साधु वो है जिसके लिए सब एक समान है क्या अमीर क्या गरीब ,साधु वो है जो मस्तमौला है ,साधु वो है जो अचल है , अडोल है। साधु वो है जो हर वक्त कुछ सिख रहा है और उस सिख को सबमे बाट रहा है ,साधु वो है जो ज्ञान पाने की चाहत में रातोदिन लगा है फिर उसी ज्ञानरत्न को सबमे बाटता फिरता है। 
क्या ऐसी साधुपना हम सभी अपने में विकसित नहीं कर सकते जिससे एक एक छण हमारा विकास निश्चित हो जाये। विकास कोई समय अवधि नहीं है की बस इतना ही सीखना है या फिर इतना ही जानना है विकास एक ऑन गोइंग प्रोसेस है जो निरंतर चलता ही रहता है कभी रुकता नहीं और धीरे धीरे हमें इतना मजबूत कर देता है की बाद में हमारे लिए सबकुछ आसान कर देता। हमे उचाई के उस सिखर पर पंहुचा देता है जहा की यात्रा हम सोचे भी नहीं होते है।
न्यूटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, रतन टाटा , सुधामूर्ति , एन. आर. नारायना मूर्ति , स्टीव जॉब्स , बिल गेट्स ये सभी वो नाम है जिनके अंदर साधुपना थी ,कुछ जानने और सिखने की भूख थी और इसलिए वो निरंतर सिखते रहे , हर दिन विकास करते रहे,हर दिन आगे बढ़ रहे है क्या ऐसा साधु बनना आप पसंद नहीं करेंगे जहा आप का रोज विकास हो। आप रोज ही आगे बढे ,आपको अपने आप पर रोज ही प्राउड फील हो। खुद को समझना एक साधुपना है ,खुद को सुधारना साधुपना है , खुद को पुलकित कर देना साधुपना है। आप को जैसा कपडा पसंद हो वैसा पहने , जैसा रहन-सहन आपको पसंद हो वैसा रहे , अपने लाइफ स्टाइल से कोम्प्रोमाईज़ मत करे लेकिन कुछ जानने की इच्छा तो रखे, ज्ञानी तो बने , ज्ञान से दुरी बना ना या फिर डरना यानि आपने जितना जाना है उसे ही सम्पूर्ण समझ लिया है इसलिए अब और आगे तक जाने की इच्छा नहीं रही।
साधु वो है जो जब चाहे तब खुद को हर बात से अलग कर ले, स्वयं को बिलकुल हल्का बना ले और अपने आविष्कार में मग्न हो जाये। छोड़ दे दुनियादारी का वो बवाल जो सिर्फ इंसान को अंदर से तंग करता है न ही कुछ सिखाता है , ना ही कुछ बनाता है सिर्फ परेशान करता है।
यहाँ लोगो की प्रोब्लेम्स है की किसी को मेहनत नहीं करनी है सबको सब कुछ आसानी से मिल जाये ,जो मिले वो मजेदार भी हो , किसी को सही दिशा नहीं चुनना है, अपने सुविधा अनुसार चलना है फिर उस सुविधा अनुसार राह को सही भी कहना है यही है आज के समाज की हालत।
उत्साह, जोश किसी टर्म्स एंड कंडीशंस का मोहताज नहीं होता की कुछ मनवाली हुई तभी उत्साह में रह कर किसी काम को करेंगे यदि मनवाली नहीं हुई तो नहीं करेंगे। उत्साह तो सदैव परछाई बनकर होना चाहिए। कहते है जब जागो तब सवेरा , कोई 55 की उम्र में भी इतिहास बना लेता है तो कोई 50 की उम्र में। जब भी जागो , जोश और होश में कुछ कर जाने की चाहत रखो।
अब्राहम लिंकन जो अमेरिका के 16 राष्ट्रपति थे और प्रथम रिपब्लिकन थे जो अमेरिका के 16 राष्ट्रपति बने उनका जीवन बेहद चुनौतीपूर्ण था लेकिन जो व्यक्ति कभी हारता नहीं , परिस्थितियों के उतार चढाव से घबराता नहीं , एक दिन इतिहास जरूर बना जाता है यदि ये हौसला आपमें है तो किसी से अपने काबिलियत की अप्रूवल लेने की जरुरत नहीं है बस आगे बढ़ते जाइये रास्ता खुद नजर आ जायेगा।
ये साधुपना सबके अंदर होना चाहिए जो व्यक्ति को हर बात से अलग करके , अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर दे।

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