अपनी कहे - मेरी सुने :-
व्यवहारिक और आध्यात्मिक दोनों छेत्रो में ताल मेल की जरुरत होती है कुछ अपनी कहो कुछ उनकी सुनो। ये ताल मेल ही जीवन को ख़ुशी से भर सकता है। आज हर कोई यही सोचता है की मेरी भावना या मेरे विचारो को मेरे घर परिवार के लोग ठीक से समझते नहीं है। सच्चाई तो यह भी अपने आप को भी कहा वो लोग ठीक से समझ पा रहे है।
ताल मेल यानि सारी बातों को लेकर एकता स्थापित करना। जहाँ बातो - भावनाओं को समझने की कला नहीं है व्यवहार में ताल मेल नहीं है वहा कलह , अशांति है। आज पिता - पुत्र , भाई - बहन, पति- पत्नी, सांस -बहु के आपसी रिश्तो में कलह आ गया है लोग एक दूसरे से दुरी बना रहे है क्यों की एक दूसरे के साथ व्यावहारिक मेल जोल नहीं रहा है। हम ये नहीं समझ पा रहे है की हम सब विचारो से अलग से है लेकिन हमें एक दूसरे के विचारो को सन्मान देना होगा। एक दूसरे के प्रति आदर भाव रखना होगा तभी एक सफल परिवार के तौर पे हम आगे बढ़ सकेंगे।
जब हम मन ही मन एक दूसरे की ख़ुशी चाहते है तो एक दूसरे के विचारो के प्रति आदर सन्मान क्यों नहीं ला सकते। एक दूसरे को न समझ पाना ही कलह का वजह है। हम सब रूप ,रंग , बोल ,चाल से अलग है क्यों की ईश्वर ने हमारी रचना ही ऐसी की है। तो ऐसा सोचना की वो हमारे जैसा क्यों नहीं बोलती ,हमारे जैसा क्यों नहीं सोचती अज्ञानता है। किसी का भी व्यवहार किसी के जैसा नहीं होता है।
हम सब जन्म से ही अद्वितीय है ,अनोखे है। दो व्यक्ति जन्म से भिन्न -भिन्न संस्कारो में पलते है दोनों के परवरिश में भिन्नता होती है तो दोनों के विचार में भिन्नता होना स्वाभाविक है ऐसे में बातो में न जाकर उन बातो का सार समझकर आपस में समन्यव स्थापित करना ही उत्तम है।
आज समाज में प्रत्येक व्यक्ति कही न कही दुखी है। ज्यादातर लोग इस बात से दुखी है की मेरे घर परिवार के लोग मुझे समझते नहीं है। मुझसे प्रेम नहीं करते। पति -पत्नी ,पिता - पुत्र , सांस -बहु सब आपस में दुखी है इस बात को लेकर की हमसे हमारे प्रिय जन प्रेम नहीं करते। हमें समझते नहीं है। लेकिन वास्तविकता यह है की यह अंदर से स्वयं ही खाली है तभी तो प्रेम दुसरो से मांग रहे है। प्रेम मांगने की वस्तु नहीं है। हमे स्वयं ही इतना सम्पन्न होना पड़ेगा की प्रेम , ख़ुशी , स्नेह हम दुसरो को दे सके।
प्रकृति को देखो , इसने बस सबको दिया है। पेड़ - पौधों ने फल - सब्जिया , नदियों ने पानी , सूर्य ने निः स्वार्थ रोशनी सबको दिया ,तो हमे इतनी मांगने की जरुरत कैसे पड़ गई। यदि हम आपस में व्यावहारिक तौर पे सरल हो जाये एक दूसरे की सार बातो को समझकर समन्वय स्थापित कर ले तो आपसी कलह शांत हो जाये।
आज समाज में प्रत्येक व्यक्ति कही न कही दुखी है। ज्यादातर लोग इस बात से दुखी है की मेरे घर परिवार के लोग मुझे समझते नहीं है। मुझसे प्रेम नहीं करते। पति -पत्नी ,पिता - पुत्र , सांस -बहु सब आपस में दुखी है इस बात को लेकर की हमसे हमारे प्रिय जन प्रेम नहीं करते। हमें समझते नहीं है। लेकिन वास्तविकता यह है की यह अंदर से स्वयं ही खाली है तभी तो प्रेम दुसरो से मांग रहे है। प्रेम मांगने की वस्तु नहीं है। हमे स्वयं ही इतना सम्पन्न होना पड़ेगा की प्रेम , ख़ुशी , स्नेह हम दुसरो को दे सके।
प्रकृति को देखो , इसने बस सबको दिया है। पेड़ - पौधों ने फल - सब्जिया , नदियों ने पानी , सूर्य ने निः स्वार्थ रोशनी सबको दिया ,तो हमे इतनी मांगने की जरुरत कैसे पड़ गई। यदि हम आपस में व्यावहारिक तौर पे सरल हो जाये एक दूसरे की सार बातो को समझकर समन्वय स्थापित कर ले तो आपसी कलह शांत हो जाये।
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