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ये उन दिनों की बात है

अब से करीब २०-25  साल पहले हमारी चुप्पी ही बहुत कुछ कह जाती थी। आँखों के जरिये सब भावनाये बया हो जाती थी। फॅमिली एंड फ्रेंड्स से मिलने के लिए उनके घर पर उनसे पूछना नहीं पड़ता था। बिना पूछे बस पहुंच जाओ। और उनकी ख़ुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं होता था. इतनी व्यस्तता भी कहा थी लाइफ में। 
ये उन दिनों की बात है जब लेने में नहीं देने में ख़ुशी थी। अपनी नहीं औरो की फिक्र हुआ करती थी। लोग इमोशनल ज्यादा थे प्रैक्टिकल कम। 
ये उन दिनों की बात है जब खुशिया आँखों से बया होती थी। खुश रहने के लिए इतने सामान की जरु
रत भी नहीं थी ,जरुरत थी तो बस अपनों के साथ की। जो अब धीरे धीरे लुप्त सी होने लगी है। बच्चे संस्कार में रहते थे। आदर ,सम्म्मान में जीते थे। जब बड़े बुजुर्गो का आदर सम्मान होता था। माँ बाप को भगवान माना जाता था। इतनी टेंशन भी मन में कहा होती थी अब तो (लो बीपी ), हाई बीपी की समस्या बच्चो को भी होने लगी। सब कहते है जमाना बदल गया है पर ये कोई नहीं कहता की ज़माने को बदलने में हाथ किस का है। इस ब्रह्माण्ड पर मनुष्य ही एक मात्र ऐसा प्राणी है जिसमे सोचने और समझने की शक्ति पूर्णरूप से है ,बुद्धिमान भी है ,और उसी ने धीरे धीरे सब कुछ बदल दिए। शिच्छा का दर्जा भी घटता गये। किताबे तो बैग में बहुत भर दिए गए लेकिन विचार शक्ति कम कर दी गई। 




Family
हस्ता चेहरा हमेशा खूबसूरत दीखता है
 अब तो समय की रफ़्तार भी इतनी हो गई है की बच्चे छोटे पर से ही बड़ी बड़ी बाते करने लगे है , मैच्चोर भी जल्द हो जा रहे है।
बेसक इंटेलिजेंस  लेवल बढ़ा है। I.Q लेवल भी बहुत अच्छा डेवलप हुआ है।  कमी बस यही नजर आ रही है की भावनाये घटती नजर आ रही है। 
जीवन की उतर चढाव तो लगी रहेगी। देखते है साइंस की तरक्की हम सब को अब कहा तक ले जाती है। इस ब्लॉग के जरिये बातो का सिलसिला चलता रहेगा। 
                                            

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